शुक्रवार 14 नवंबर 2025 - 23:37
फ़ातिमा ज़हरा सला मुल्ला अलैहा की मारफ़त और मोहब्बत इस दुनिया और आख़िरत में खुशी का स्रोत है: मौलाना सय्यद नक़ी मेहदी ज़ैदी

हौज़ा / तारागढ़ अजमेर के इमाम जुमा ने नमाज़-ए-जुमे के ख़ुतबों में अय्याम-ए-फ़ातिमिया की मुनासबत से जनाब सय्यदा फ़ातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) के फ़ज़ाइल बयान करते हुए कहा कि जनाब फ़ातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) की मारफ़त और मोहब्बत को अपनाना इंसान की सआदत का ज़रिया है। रिवायतों के मुताबिक़, किसी नबी की नबुव्वत उस वक़्त तक मुकम्मल नहीं हुई जब तक उन्होंने हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) की मोहब्बत और फ़ज़ीलत का इकरार न किया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट अनुसार, हुज्जतुल-इस्लाम मौलाना सैयद नकी महदी ज़ैदी ने तारागढ़ अजमेर, हिंदुस्तान में नमाज़-ए-जुमे के ख़ुतबों में नमाज़ियों को तक़वा-ए-इलाही की नसीहत के बाद, हसब-ए-साबिक़ इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के वसीयत-नामा की शरह व तफ़सीर करते हुए ख़वातीन के हुक़ूक़ का ज़िक्र किया। उन्होंने कहा कि अय्याम-ए-अज़ा-ए-फ़ातिमिया (सला मुल्ला अलैहा) की मुनासबत को पेशे-नज़र रखते हुए बेहतर है कि इन दिनों में इस्लाम में ख़वातीन का मकाम और उनका ज़िक्र किया जाए।

उन्होंने मज़ीद कहा कि इस्लाम एक मुकम्मल तरीक़ा-ए-ज़िंदगी और ज़ाबिता-ए-हयात है, जो इंसान की तमाम पहलुओं में रहनुमाई करता है। इस्लाम में औरत का मकाम बहुत अहम है, जो इंसानी मुआशरत की बुनियाद है। इस्लाम ने औरत को वो हुक़ूक़ दिए हैं जो किसी दूसरे मज़हब या क़ौम में नहीं मिलते। मसलन, इस्लाम ने औरतों को पहले ही मीरास का हक़ दिया, वहां जहाँ दुनिया के दूसरे हिस्सों में औरतों को ऐसा हक़ हासिल नहीं था।

तारागढ़ के इमाम जुमा ने कहा कि औरत को इस्लाम में माँ, बीवी, बहन, बेटी और मुआशरे के एक अफ़राद के तौर पर अहम हुक़ूक़ दिए गए हैं। जैसा कि रसूल-ए-अकरम (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम) ने फ़रमाया कि जन्नत माँ के क़दमों तले है जो औरत के मकाम व मरतबा की अहमियत को बयान करता है। ज़ौजा (पत्नि) की हैसियत से मेहर और नान-ओ-नफ़क़ा के बारे में इस्लाम की तालीमात मौजूद हैं, और अगर बेटी है तो इस्लाम ने उसके लिए भी हक़-ए-मीरास तय किया है।

उन्होंने कहा कि औरत को उसके हुक़ूक़ से महरूम करना इस्लाम की तालीमात के खिलाफ़ है। इस्लाम ने औरतों के इन हुक़ूक़ को बयान करके उनकी अज़मत, हरमत और मकाम को वाज़ेह किया है।

हुज्जतुल-इस्लाम मौलाना नकी महदी ज़ैदी ने कहा कि जनाब-ए-फ़ातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) की मा’रिफ़त और मोहब्बत को अपनाना इंसान की सआदत का ज़रिया है। रिवायतों के मुताबिक़ किसी नबी की नबुव्वत उस वक़्त तक मुकम्मल नहीं हुई जब तक उन्होंने हज़रत फ़ातिमा (सला मुल्ला अलैहा) की मोहब्बत और फ़ज़ीलत का इकरार न किया।

उन्होने कहा कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) की शख्सियत इंसानी फहम व इद्राक़ की हदूद से ऊपर है। उनकी मोहब्बत, उनकी मा’रिफ़त और उनकी तालीमात को अपनाना हमारी मुआशरती और रूहानी तरक़्क़ी का ज़ामिन है।

उन्होंने मज़ीद तौक़ीद की कि अय्याम-ए-अज़ा-ए-फ़ातिमिया को पिछले सालों से ज़्यादा इस साल भी जोश-ओ-ख़रोश के साथ मनाया जाए, ताकि इस मुक़द्दस हस्ती की तालीमात नई नस्ल तक पहुँचा सकें और हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) की सीरत को नशर कर सकें।

तारागढ़ के इमाम जुमा हुज्जतुल-इस्लाम मौलाना नकी महदी ज़ैदी ने दिल्ली में पेश आए बम ब्लास्ट के हादसे की सख़्त अल्फ़ाज़ में मज़म्‍मत करते हुए कहा कि हम इस अलमनाक व अफ़सोसनाक हादसे पर इंतिहाई दुख और अफ़सोस का इज़हार करते हैं और मुतासिरा ख़ानदानों के साथ हमदर्दी और यकजहती का इज़हार करते हुए, हम सब मिलकर मुल्क में अम्न-ओ-अमान और भाईचारे की दुआ करते हैं।

टैग्स

आपकी टिप्पणी

You are replying to: .
captcha